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अंतरिक्ष में एस्ट्रोनॉट्स कैसे जाते है और वापिस पृथ्वी पर लौटते है

16 जनवरी 2003 नासा के कोलम्बिया नाम के एकस्पेशल स्पेस ग्राफ में पृथ्वी से अन्तरिक्ष के लिए उड़ान भरी स्पेस क्राफ्ट कोलम्बिया की यह 28 वी फ्लाईट थी और इसमें 7 लोग सवार थे 16 दिनों तक इन सातोंएस्ट्रोनोट्स ने कई एक्सपेरीमेंट किये और फिर 1 फरबरी 2003 के दिन वक्त आया इन सभी का पृथ्वी पर वापस लौटने का ! सभी एस्ट्रोनोट्स बहुत खुश थे सभी प्लेन के हिसाब से चल रहा था विमान पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने ही बाला था की अचानक उसे सम्पर्क टूट गया और एक सन्नाटा छा गया ग्राउंड टीम ने कुछ देर बाद बताया की कोलम्बिया अन्तरिक्ष में ब्लास्ट हो गयाऔर दोस्तों अगर आपने इस हादसे के बारे में नही सुना है तो चौक जाएंगे यह जानकार की इन एस्ट्रोनोट्स में हमारे भारत की कल्पना चावला भी शामिल थी ! दोस्तों इस प्रोजेक्ट में गई एस्ट्रोनोट्स की टीम और ग्राउंड पर साइंटिस्ट की टीम सब अपनी फिल्ड में एक्सपर्ट थे कोलम्बिया का अंजाम ऐसा होगा यह किसी ने भी नही सोचा था लेकिन दोस्तों इसमें जाकर एक कंट्रोल्ड एन्वायरमेंट में एक्सपेरिमेंट करना एक बड़ी बात है !

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अंतरिक्ष में एस्ट्रोनॉट्स कैसे जाते है और वापिस पृथ्वी पर लौटते है

एक असली और खतरनाक खेल तो अन्तरिक्ष में जाने और वहां से वापस पृथ्वी पर आने का है आज हम इस रिपोर्ट में स्पेस में इंसान के जाने और वापस धरती में आने के इस जटिल विज्ञान को आसान भाषा में समझेंगे तो दोस्तों बने रहे मेरे साथ अगले कुछ मिनटों के लिए क्योंकि यह अन्तरिक्ष की यात्रा है थोडा समय तो लेगी ही !दोस्तों वैसे तो दिवाली पर रोकेट की पूंछ पर आग लगाने पर उसे दुसरे के घरों में पहुँचाने बाला हर शक्स यह बात जानता है की रोकेट ही वो व्हीकल है जिसकी मदद से स्पेस में पहुंचा जाता है इसके अलावा अन्तरिक्ष से जुड़ा दूसरा नाम जो हमे सुनने में आता है वो है स्पेस क्राफ्ट ! अब आप कहेंगे इस स्पेस क्राफ्ट को अन्तरिक्ष में जाने के लिए बनाया जाता है तो दोस्तों फिर रोकेट क्या होता है ? क्या यह दोनों एक ही नही है नही दोस्तों ! सबसे पहले तो आप यह जान लीजिये की रोकेट और स्पेस क्राफ्ट दोनों अलग अलग होते है क्योंकि स्पेस में एस्ट्रोनोट्स स्पेस क्राफ्ट में बैठकर ट्रबल करते है रोकेट को आप एक टेक्सी से कम्पेयर कर सकते है और स्पेस क्राफ्ट को एक सवारी से ! अन्तरिक्ष में स्पेस क्राफ्ट का ही मेन काम होता है इसी में एस्ट्रोनोट्स और एक्सपेरिमेंट के लिए जरूरी अक्युप्मेंटस रखे होते है ! यहाँ समझने बाली बात यह है की अन्तरिक्ष में जाने के लिए रोकेट और स्पेस क्राफ्ट दोनों जरूरी है क्योंकि जिस स्पेस क्राफ्ट में अन्तरिक्ष यात्री को पृथ्वी से स्पेस में भेजा जाता है उसे रोकेट के इंजन से ही जोड़ा जाता है और वही उसे अन्तरिक्ष तक पहुंचाता है और इस पूरे प्रोसेस को और बेहतर तरीके से समझने के लिए पहले हम यह जान लेते है की रोकेट काम कैसे करता है ? तो दोस्तों न्यूटन का थर्ड लो ऑफ़ मोशन कहता है की हर एक्शन का बराबर एंड अपोजिट डायरेक्शन होता है जैसे हम जब जमीन पर बौल उछालते है तब बौल जिस स्पीड से हमने निचे मारी होगी उतनी ही स्पीड से वो वापस उछलती है और एक रोकेट थर्ड लो ऑफ़ मोशन के इसी सिधांत पर काम करता है ढेर सारे फ्यूल के क्म्बर्शन से पैदा हुए थर्सड का इस्तेमाल करके ही रोकेट जमीन से उठता है !यहाँ आप एक और चीज समझ लें की जैसा की आप सोचते है की वो लम्बा सा गोलाकार यान रोकेट होता है तो दोस्तों आपको बता दूँ की हकीकत में रोकेट सिर्फ एक तरह का इंजन होता है जिसका काम अन्तरिक्ष तक अपने पेलोड को पहुँचाना होता है पेलोड में कुछ भी हो सकता है एक सेटालाईट , साइंटिफिक अक्युव्मेंट अन्तरिक्ष यात्री से लेकर स्पेस प्रोगभी ! हवाई जहाज की तरह एक रोकेट को भी काम करने के लिए इंधन की जरूरत होती है जब इंधन जलता है तब उसमे से गर्म गेसेज उसमे से निकलने लग जाती है अपनी बनावट की बजह से एक रोकेट इंजन इन गेसेज को निचे की तरफ छोड़ने लगता है जिसे एक थर्सड यहाँ पैदा होता है और रोकेट हवा में उड़ने लगता है !

अंतरिक्ष में एस्ट्रोनॉट्स कैसे जाते है और वापिस पृथ्वी पर लौटते है

दोस्तों एक रोकेट और एरोप्लेन के इंजन में सबसे बड़ा फर्क यह है की एरोप्लेन को अपने इंधन को जलाने के लिए हवा में मौजूद ऑक्सीजन की जरूरत होती है वहीँ दूसरी तरफ एक रोकेट धरती के वायुमंडल के साथ साथ अन्तरिक्ष और वेहद कम दबाब बाली जगहों में भी उड़ सकता है क्योंकि इसका इंजन इंधन को जलाने के लिए जरूरी ओक्सिडाइजेस्ट अपने साथ लेकर उठता है ! इसके इंजन को बाहर से ऑक्सीजन लेने की जरूरत नही पड़ती इसलिए यह कहीं भी और कितनी भी ऊंचाई तक उड़ सकता है एक रोकेट इंजन में दो तरह के इंधन का इस्तेमाल किया जाता है !लिक्युड पोप्लेंट और सॉलिड पोप्लेंट लेकिन खास तोर पर एक स्पेस शटल में लिक्विड फ्यूल का ही इस्तेमाल किया जाता है मेंनरोकेट इंजनके अलावाइसमें बूस्टर रोकेट भी लगे होते है जो इसे पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकालने में जरूरी एक्स्ट्रा पुश देते है क्योंकि बूस्टर रोकेट का इस्तेमाल पृथ्वी की कक्षा के अंदर ही होता है इनमे सॉलिड प्रोपेलेंट का ही इस्तेमाल होता है फ्यूल खत्म होने के बाद यह मेन रोकेट इंजन से अपने आप अलग हो जाते है और बाकी का रोकेट अपनी आगे की जर्नी पर निकल जाता है ! तो दोस्तों अब में यह समझूंगा की रोकेट क्या होता है ? कैसे काम करता है ? आप समझ गए होंगे !

अंतरिक्ष में एस्ट्रोनॉट्स कैसे जाते है और वापिस पृथ्वी पर लौटते है

अब बड़ते है स्पेस क्राफ्ट की तरफ ! दोस्तों स्पेस क्राफ्ट एक हवाई जहाज की तरह ही होता है ! जिसके अंदर अन्तरिक्ष यात्रियों के रहने खाने पिने और सोने जैसी तमाम जरूरतों के साथ सारी फेसिलिटी मौजूद होती है स्पेस क्राफ्ट का आगे के हिस्से में उसका पूरा कंट्रोलिंग सिस्टम होता है जहाँ से अन्तरिक्ष यात्री उसे कंट्रोल कर सकते है जैसे ही एक स्पेस क्राफ्ट अन्तरिक्ष में पहुँचता है तब उसका मेन रोकेट इंजन भी उसे अलग हो जाता है और यहाँसे शुरू होता है स्पेस क्राफ्ट का सफर शुरू होता है जिसकी कमान अब होती है अन्तरिक्ष यात्रियों के हाथ में ! इसे पहले पूरी नेविगेशन ग्राउंड पर बैठी टीम कंट्रोल कर रही होती है अन्तरिक्ष यात्री इस स्पेस क्राफ्ट को ठीक उसी तरह से चला सकते है जैसे कोई पायलेट एरोप्लेन को उड़ाता है इसके अंदर एडवांस टेक्नोलोजी के सेंसर और मशीने लगी होती है जिनकी बदोलत ही अन्तरिक्ष यात्री स्पेस में रिसर्च औरएक्सपेरीमेंट परफोर्म कर पाते है !दोस्तों अब यह साफ़ है की स्पेस ट्रेबल के लिए एक स्पेस क्राफ्ट और रोकेट का होना जरूरी है इनके बिना यह मुमकिन नही लेकिन दोस्तों रोकेट को लोंच करने के लिए जिस तीसरे मेगा अक्युब्मेंट की जरूरत होती है वो होता है लोंच पैड ! लोंच पैड वो प्लेटफोर्म होता है जिसकी मदद से रोकेट को आकाश की तरफ सीधी रेखा में प्रोजेक्ट किया जाता है लोंच का यह प्रोसेस रोकेट पेलोर्ड पर डिपेंड करता है पेलोंड जितना ज्यादा होता है लोंच की स्टेज भी उसी हिसाब से प्लेन की जाती है लोंच होने के कुछ मिनटों में शटल पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश कर जाता है जिसके बाद रोकेट्स पृथ्वी में वापस आ गिरते है !दोस्तों आपको यह भी बता दूँ की एस्ट्रोनोट्स पृथ्वी की कक्षा से ज्यादा दूर नही जा पाते कई वैज्ञानिकों का कहनाहै की अभी हमारे पास उस लेबल की टेक्नोलोजी नही है की हम खुद जाकर डीप स्पेस में एक्सप्लोरेशन कर पाए ! इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन एस्ट्रोनोट्स के लिए एक होटल की तरह होता है जिसमे कई माड्यूल अक्युब्मेंट और फेसिलिटी मौजूद होती है अन्तरिक्ष में जाने बाले ज्यादातर एस्ट्रोनोट्स अपनी रिसर्च और एक्सपेरीमेंट को ISS या फिर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से ही परफोर्म करते है  |

अंतरिक्ष में एस्ट्रोनॉट्स कैसे जाते है और वापिस पृथ्वी पर लौटते है

अभी हम यह जानेगे की अपने सभी एक्सपेरिमेंट करने और कई दिन स्पेस में बिताने के बाद यह एस्ट्रोनोट्स धरती पर लौटते कैसे है आप में कुछ कहेंगे की जिस तरह वो रोकेट के जरिये स्पेस में पहुंचे थे उसी तरह एक रोकेट के जरिये वो पृथ्वी पर वापस आएँगे ! लेकिन दोस्तों अगर आप यह  ध्यान से पढ़ रहे है तो आप जानते होंगे की स्पेस क्राफ्ट के साथ वापसी की तरफ कोई रोकेट होता ही नही !अन्तरिक्ष में पहुँचने के बाद रोकेट उससे अलग हो जाता है तो दोस्तों इस सवाल का जबाब है स्पेस क्राफ्ट ! लेकिन यह प्रोसेस भी काफी खतरनाक होता है क्योंकि वो लगभग 17 हजार 500 मील प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी की तरफ ट्रेबल कर रहे होते है रिएंट्री के लिए स्पेस क्राफ्ट पृथ्वी की कक्षा के चारों ओर चक्र लगाते हुए धीरे धीरे पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करता है ! पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हुए स्पेस क्राफ्ट को तेज और गर्म हवाओं का सामना करना पड़ता है यह हवाएं इतनी खतरनाक होती है की इसके दबाब और घर्षण के कारण स्पेस क्राफ्ट जलकर राख भी हो सकता है ! इस कन्डीशन से बचने के लिए स्पेस क्राफ्ट की उपरी सतह तक एक खास तरह की हीट रविस्टर चादर लगाई जाती है अगर किसी कारण से यह चादर न हो या फिर यह टूट जाए तो स्पेस क्राफ्ट का पृथ्वी पर वापस आना काफी मुश्किल हो सकता है ! फिर जैसे जैसे यह स्पेस क्राफ्ट पृथ्वी की सतह के नजदीक आता जाता है वो जमीन के पैदल उड़ने लगता है , और फिर आता है लेंडिंग का टाइम जो किसी भी एस्ट्रोनोट्स के लिए काफी क्र्युश्ल होता है क्राफ्ट की लेंडिंग का यह प्रोसेस किसी एरोप्लेन की लेंडिंग की प्रोसेस की तरह ही होता है लेकिन फर्क यह होता है की स्पेस क्राफ्ट की स्पीड बहुत ज्यादा होती है इसलिए लेंडिंग के वक्त इसमें पीछे की तरफ एक पेराशूट भी खुलता है !और इसी तरह पृथ्वी पर अन्तरिक्ष यात्री वापस सही सलामत पहुँचते है स्पेस क्राफ्ट की लेंडिंग भी एयर पोर्ट रनवे पर कराई जाती है और इस दौरान एरोप्लेन की तरह ही स्पेस क्राफ्ट के पहिये भी खुल जाते है हालाँकि मरकरी , जेमिनी , अपोलो , सोयुज जैसेकुछ स्पेस क्राफ्ट की लेंडिंग समुद्र में भी कराई गई थी जिसे स्प्लेश डाउन कहा जाता है ! लेकिन यह प्रोसेस अब कम ही इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि इसमें स्पेस क्राफ्ट के डूबने का खतरा बना रहता है जो अन्तरिक्ष यात्रियों के लिए घातक साबित हो सकता है !

अंतरिक्ष में एस्ट्रोनॉट्स कैसे जाते है और वापिस पृथ्वी पर लौटते है

और दोस्तों अगर आपने कभी ध्यान दिया हो तो स्पेस क्राफ्ट से आने बाली हर तस्वीर में अन्तरिक्ष यात्री सफेद रंग के सूट में ही दिखाई देते है लेकिन दोस्तों जब एस्ट्रोनोट्स स्पेस के लिए रवाना होते है या फिर पृथ्वी पर वापस आते है तब उन्होंने ओरेंज कलर का स्पेस सूट पहना होता है !ओरेंज स्पेस सूट को अडवांस क्रू एस्केप कहते है जबकि सफेद स्पेस सूट को एक्स्ट्रावेहिकुलर एक्टिविटी सूट कहते है ! इनके पीछे भी एक ख़ास कारण है दरअसल यह दोनों ही स्पेस सूट अन्तरिक्ष यात्रियों की सेफ्टी को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किये जाते है स्पेस सूट का रंग ओरेंज होने का कारण यह है की इसका रंग दुसरे रंगों से ज्यादा बिजिबल होता है ! इस ओरेंज सूट को स्पेस में जाते वक्त और स्पेस से वापस पृथ्वी पर आते वक्त पहना जाता है ताकि जाने या आने के समय कोई दुर्घटना हो जाए तो अन्तरिक्ष यात्री को उसके सूट के रंग की मदद से आसानी से ढूंडा जा सके ! ओरेंज सूट में पेराशूट जैसी कईचीजें अटेच होती है जिसे किसी दुर्घटना होने की स्थिति में एक अन्तरिक्ष यात्री की जान बच सके साथ ही इस सूट में एक लाईट राफ्ट भी होती है जो पानी के सम्पर्क में आते ही अपने आप खुल जाती है वहीँ बात करते है सफेद स्पेस सूट की तो अन्तरिक्ष यात्री इसे स्पेस में इसलिए पहनते है ताकि वो अन्तरिक्ष के घने अँधेरे में दूर से ही दिख जाएं सफेद सूट काफी अडवांस टेक्नोलोजी से बनाए जाते है !

     अंतरिक्ष में एस्ट्रोनॉट्स कैसे जाते है और वापिस पृथ्वी पर लौटते है

जाते जाते में आपको यह भी बताता जाता हूँ की यह स्पेस क्राफ्ट रियुजेबल होते है मतलब की इन्हें बार बार स्पेस में भेजा जा सकता है हालांकि कुछ सालों पहले टेक्नोलोजी ने एक कदम और आगे बढ़ाते हुए एक करिश्मा कर दिखाया था जब एक प्राइवेट स्पेस कम्पनी स्पेस एक्स के मालिक एलोन मस्क ने रियुजेबल रोकेट बनाने की घोषणा कर दी थी इसी कम्पनी का एक पार्श्ली रियुजेबल रोकेट फाल्कन 9 इतना सक्सेसफुल हुआ की इसे देखते ही इसरो ने भी इसी तरह के फूली रियुजेबल रोकेट बनाने की तैयारी कर ली है ! कहने का मतलब यह है की अब एक रोकेट भी सेटेलाईट को उसकीकक्षा में स्थापित करने के बाद वापस पृथ्वी पर लौट सकेगा ! और फिर से काम में आसकेगा लेकिन उतना विज्ञान फिर कभी ! आज आपने अगर कुछ नया सिखा हो तो इस विडियो को लाइक और अपने दोस्तों के साथ शेयर करें !

 

 

 

 

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