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मेरा नाम है अश्वत्थामा और मैं अभी जिंदा हूं, मान्यता या सच पढ़िए ये रिपोर्ट

वो जिन्दा हैं हजारों सालो से वो यहां वहां भटक रहा हैं न जाने कितनी ही सदियों से आखिर वो किसकी तलाश में हैं वो कभी दिन में छलावे की तरह तो कभी अँधेरी रात में चुपचाप आता हैं। कुछ लोगो के लिए उसका आना केवल कहानी किस्सों के जैसा हैं लेकिन कई लोगों का ये विश्वास है की उन्होंने उसे देखा हैं अपनी आंखो से अपने सामने किसी दिव्य शरीर वाला कौढ़ से परेशान होता हुआ अपने जख्म को आराम देने के लिए तेल मांगता हुआ। वो महाभारत काल में भी था और वो आज भी हैं जी हाँ !

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हम बात कर रहे हैं महाभारत कालीन गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा की जिन लोगों ने उसे देखा हैं वो कहते हैं की अश्वत्थामा आज भी जिन्दा हैं। हमारा इतिहास बेहद पुराना हैं लेकिन फिर भी महाभारत को इतिहास में कोई जगह नहीं मिली। जिस कारण महाभारत की कुछ किस्से महस एक मिथक बन कर रह गयी इन्ही में से एक हैं अश्वत्थामा के जिन्दा या मृत होने का किस्सा जो आज भी उलझा हुआ हैं रहस्यों से लेकिन क्या अलग अलग लोगों का एक ही तरह की घटना पर सहमत होना महेस एक मिथक हो सकता हैं। मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले से 20 किलोमीटर दूर स्थित असीरगढ़ का एक किला अपने अंदर न जाने कितने ही राज दबाये हुए हैं। जिन्हे लेकर लोगों की अलग अलग धारणाएं हैं। यहाँ के लोगों का कहना हैं की किले के अंदर स्थित गुप्तेश्वर मंदिर में अश्वत्थामा आते हैं पूजा करते हैं और चले जाते हैं। वो किसी को नजर नहीं आते। माना जाता हैं की वे सुबह सुबह आते हैं और किसी के उठने या मंदिर में आने के पहले ही शिवलिंग की पूजा करके चले जाते हैं। हालांकि कुछ लोगों का दावा हैं की उन्होंने अश्वत्थामा को देखा हैं लेकिन अगर ये सिर्फ मिथक हैं तो वो कौन हैं जो हर सुबह मंदिर का ताला खोलने के पहले ही शिवलिंग की पूजा करके चला जाता हैं।

मेरा नाम है अश्वत्थामा और मैं अभी जिंदा हूं, मान्यता या सच पढ़िए ये रिपोर्ट

आखिर क्यों हर दिन शिवलिंग पर फूल चढे दिखते हैं जल चढ़ा मिलता हैं सूरज ढलने के बाद असीरगढ़ के इस किले में किसी को रुकने नहीं दिया जाता सब जगह ताले लगा दिए जाते हैं। पूरे किले को बंद कर दिया जाता हैं। तो फिर आखिर वहां कोई कैसे आ सकता हैं। ये तभी संभव हैं जब किसी के पास दिव्य शक्तियां हो। जिन लोगों ने अश्वत्थामा को देखा हैं उनका कहना हैं की अश्वत्थामा दिखने में किसी आम इंसान की तुलना में काफी बड़े हैं। उनका कद काफी ऊंचा हैं शरीर पर गहरे जख्म हैं वो कोढ़ रूप से ग्रसित हैं उनके शरीर के भिन्न भिन्न अंगो के साथ ही उनके माथे से लगातार खून बहता रहता हैं इन घावों को भरने के लिए ही वो कई बार लोगों से तेल भी मांगते नजर आते हैं। ऐसा कहा जाता हैं की ये घाव महाभारत के समय की हैं युद्ध में अश्वत्थामा बहुत अधिक घायल हो गए थे जिस कारण उनके घाव अब तक नहीं भरे हैं वो आज भी जंगलो में भटक भटक कर श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया श्राप भुगत रहे हैं आखिर महाभारत के दौरान अश्वत्थामा के साथ ऐसा क्या हुआ जो वो आज भी जिन्दा हैं भटक रहे हैं चाहकर भी उन्हें मौत नहीं आ रही।

मेरा नाम है अश्वत्थामा और मैं अभी जिंदा हूं, मान्यता या सच पढ़िए ये रिपोर्ट

ये जानने के लिए हमें जानना होगा महाभारत के उन किस्सों को जहाँ इसकी शुरुआत हुई। दरअसल जब अश्वत्थामा का जन्म हुआ तब उनके गले से घोड़े की तरह हिनहिनाने जैसी आवाज निकली जिसके कारण इनका नाम अश्वत्थामा पड़ा जन्म से ही अश्वत्थामा के माथे पर एक अमूल्य मणि विद्यमान था जो उन्हें दैत्य ,शस्त्र ,व्याधि, देवता और नाद आदि से निर्भीक रखता था। महाभारत के युद्ध में अश्वत्थामा ने अपने पिता गुरु द्रोणाचार्य के भांति कौरवों का साथ दिया। अश्वत्थामा एक वीर योद्धा जिसने महाभारत के युद्ध में अपना पराक्रम दिखाया जिससे पांडव हारते नजर आ रहे थे। गुरु द्रोण और बेटे अश्वत्थामा ने मिलकर पांडवों को परास्त कर ही दिया था की श्रीकृष्ण ने कपट निति अपनाकर युधिष्ठिर से झूठ कहने को कहा सारे युद्ध में ये बात फैला दी गयी की अश्वत्थामा मारा गया हैं। जबकि जो मारा गया था वो अश्वत्थामा हाथी था। युधिष्ठिर से सत्यता की पुष्टि करने के लिए जब पूछा गया तो उन्होंने कहा अश्वत्थामा मारा गया परन्तु हाथी लेकिन श्रीकृष्ण की शलखनात करने के कारण हाथी शब्द गुरु द्रोण नहीं सुन पाए और पुत्र शोक में उन्होंने अपने शस्त्र त्याग दिए इस अवसर का फायदा उठाकर धृष्टद्युम्न ने उनका सर काट दिया। जब अश्वत्थामा को इस कपट निति का पता चला तो वो गुस्से में आग बबूला हो गया और उसने अब युद्ध में कपट निति अपनाने की ठान ली ! उसने रात के अँधेरे में मौका पाते ही द्रौपती के पांचो पुत्रो का सोते हुए वध कर दिया इससे जब अर्जुन क्रोध में आकर अश्वत्थामा का पीछा करने लगा तो एका एक अश्वत्थामा ने अर्जुन पर ब्रम्हास्त्र छोड़ दिया अश्वत्थामा ब्रम्हास्त्र छोड़ना तो जनता था लेकिन लौटाना नहीं इसलिए इसे रोकने के लिए अश्वत्थामा ने ब्रम्हास्त्र को अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर मोड़ दिया ! अवोध बालको और स्त्री की हत्या अधर्म हैं ये कहकर श्रीकृष्ण ने क्रोधित होते हुए अश्वत्थामा के माथे पर लगा मणि निकाल लिया और कलियुग के अंत तक उन्हें पृथ्वी पर भटकने का श्राप दे दिया मणि निकल जाने से अश्वत्थामा की सारी शक्तियां चली गयी और बस ऐसी ही मान्यता हैं की तब से लेकर अब तक अश्वत्थामा के माथे से लगातार खून बह रहा हैं। उसके शरीर पर महाभारत कालीन घाव हैं जो अभी तक भी नहीं भरे हैं न जाने कितने युग अश्वत्थामा ने ऐसे ही यहां वहां भटक कर गुजारे हैं और न जाने कितने ही युग गुजारना अभी बाकी हैं। कैसा लगा कमेंट करके जरूर बताये पसंद आया हो तो लाइक करे अपने दोस्तों के साथ शेयर करे ! फिर मिलेंगे किसी नए टॉपिक के साथ नमस्कार !

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