सौरव गांगुली के दादागिरी की मशहूर कहानी

कप्तान क्रिकेट डिक्शनरी का एक ऐसा शब्द जिस के इर्द-गिर्द कई महान कहानियां गढ़ी गई
जिस टीम का कप्तान समझदार और दूरदृष्टि रखने वाला हुआ है उस टीम ने बड़ी से बड़ी चुनौती को भी पार किया है भारतीय क्रिकेट इतिहास में एक ऐसे ही बेबाक , मेहनती और बहादुर कप्तान का नाम है दादा यानी सौरव गांगुली ! वह सौरभ गांगुली जिन्होंने विदेशी धरती पर भारत को जीत का स्वाद चखाया ,
वह सौरव गांगुली जिन्होंने विरोधियों की आंखों में आंखें डाल कर मुकाबला किया , वह सौरव गांगुली आज की सर्वश्रेष्ठ भारतीय टीम की नींब 20 साल पहले ही रख दी थी तो चलिए दोस्तों आज हमारे फेसबुक पेज पर सबके चहेते सौरव गांगुली के जिंदगी के उन पहलुओं पर नजर डालते हैं जिन की सीढ़ियां चढ़कर गांगुली ने एक आक्रामक बल्लेबाज के महान कप्तान तक का करिश्माई सफर तय किया !
दोस्तों सौरव गांगुली का जन्म 8 जुलाई 1972 को कोलकाता के पारंपरिक बंगाली परिवार में हुआ सौरव गांगुली के पिता चंडीदास गांगुली शहर के मशहूर व्यापारी होने के साथ द क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल के सदस्य भी थे उनके पिता की वजह से गांगुली ने ग्राउंड जाना शुरू किया और वो फुटबॉल को दिल दे बैठे सौरव गांगुली ने अपने शुरुआती शिक्षा .‘
प्राप्त की और वहीं उन्होंने दसवीं तक फुटबॉल खेला ! उस दौरान सौरव रोज ग्राउंड से चोट खाकर घर पहुंचते और अगले दिन स्कूल नहीं जाते जबकि उनकी माता रूपा गांगुली चाहती थी कि सौरभ पढ़ाई में टॉप करें इसलिए सौरभ के फुटबॉल खेलने के लिए रोक लगा दी गई
इधर दसवीं के एग्जाम के बाद मिली छुट्टियों में सौरव ने घर पर अपने शैतानीयों से परेशान कर रखा था ध्यान बँटाने के लिए सौरभ को बड़े भाई स्नेहाशीष के साथ क्रिकेट स्टेडियम भेजा जाने लगा और इस तरह सौरभ की जिंदगी में क्रिकेट की एंट्री हुई ! घर से बचने के लिए सौरभ ने भाई के साथ मैदान में वक्त गुजारना शुरू किया उस वक्त गांगुली बॉलिंग और फील्डिंग करते थे
कभी बल्लेबाजी का मौका मिलता भी तो वह बड़े भाई के पैड और ग्लव्स पहनकर लेफ्ट हैंड से बैटिंग किया करते थे जबकि असल जिंदगी में सौरव गांगुली right-handed है इस वक्त सौरव गांगुली छुट्टियां बिताने के लिए क्रिकेट खेल रहे थे लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था
इस साल 1987 में बंगाल टाइफाइड की मार झेल रहा था इस दौरान ही एक मैसेज पहले बंगाल अंडर फिफ्टीन के 7 खिलाड़ियों को टाइफाइड हो गया ऐसे m.b परमार के कहने पर सौरव गांगुली को टीम पर ले लिया गया गांगुली ने उस मैच में शतक बनाया और टीम को जीत दिलाई इस पारी ने क्रिकेट को लेकर गांगुली के नजरिया बदल दिया
अब उन्हें क्रिकेट खेल में मजा आने लगा गांगुली को जब भी मौका मिलता वो अच्छा प्रदर्शन करते हैं लगातार बेहतरीन प्रदर्शन गांगुली को ! साल 1989 में बंगाल रणजी स्क्वाड में ले आया लेकिन वह अंतिम 11 में जगह नहीं बना पा रहे थे , फिर आया 1989 रणजी फाइनल गांगुली को रणजी डेब्यू करने का मौका मिला मगर अपने भाई स्नेहाशीष गांगुली की जगह एक अजीब एहसास के साथ गांगुली ने रणजी डेब्यू किया और उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा !
सौरभ का रणजी डेब्यू एक नाटकीय अंदाज में हुआ था मगर उसके बाद सौरव के लिए अगले 3 साल उतार-चढ़ाव भरे रहे जिसकी शुरुआत साल 1991 के आखिरी दिनों में तब हुई जब सौरव को घरेलू क्रिकेट मैच प्रदर्शन के लिए दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध भारतीय टीम में शामिल किया गया
हालांकि सौरव गांगुली को इस सीरीज में डेब्यू करने का मौका नहीं मिला मगर चयनकर्ताओं ने उन्हें ऑस्ट्रेलिया जाने वाली भारतीय टीम में शामिल ! साल 1992 का वह दौर करीब 4 महीने चला मगर सौरव गांगुली को पर्याप्त मौके नहीं मिले उस दौरे पर सौरव गांगुली के ज्यादातर वक्त ड्रिंक्स बार के रूप में गुजरा और नेटस पर सिर्फ बॉलिंग करने का ही मौका मिला !
आलम यह था कि जब दौरे के अंत में गांगुली को डेब्यू करने की बारी आई तो उन्होंने स्पिनर रायडू से कुछ गेंदे फेंकने के लिए और महीनों बाद बल्लेबाजी की आखिर 11 जनवरी 1992 के दिन वेस्टइंडीज के विरुद्ध वनडे में सौरव गांगुली ने इंटरनेशनल डेब्यू किया मगर यह डेब्यू मैच सौरव गांगुली के लिए बहुत साधारण रहा वह सिर्फ 3 रन बनाकर आउट हो गए
महज एक मैच के बाद ही सौरव गांगुली को टीम से ड्रॉप कर दिया और उन्हें वापस भारत भेज दिया गया दौरे के बाद टीम मैनेजर ने शिकायत की कि मैच के दौरान सौरव ड्रिंक्स ले जाने के लिए मना किया करते थे इसके बाद मीडिया में सौरव गांगुली को घमंडी कहा जाने लगा
हालांकि आगे चलकर ये आरोप गलत साबित हुए मगर वह 4 महीने सौरव गांगुली के लिए एक बुरे सपने की तरह थे इन 4 महीनों में 22 साल के सौरव ने निराशा और बदनामी दोनों देखी ! सौरव जब घर लौटे तो उन्होंने अपने पिता को भरोसा देते हुए कहा आप फिक्र ना करें मैं जल्द ही भारतीय टीम में वापसी करूंगा !
दोस्तों सौरव का फुटबॉल छोड़कर भारतीय क्रिकेट टीम में आना किस्मत के चलते अंडर 15 में शतक बनाना और भाई की जगह रणजी टीम से होते हुए भारतीय टीम में आना अभी तक की इस कहानी में सौरव जी की कामयाबी में उनकी मेहनत से ज्यादा नसीब का हाथ जुड़ता है जो बात काफी हद तक सही भी है
मगर साल 1992 में सौरव को ऑस्ट्रेलिया में जो ठोकर लगी थी उसने सौरव को कमजोर नहीं किया बल्कि उनके मन में देश के लिए खेलने की आग को जवाला बना दिया ! सौरव ने अपने पिता से किए गए वादे और देश के लिए दोबारा खेलने का प्रण लिया, मैदान में जमकर खेलना शुरू कर सौरव ने अपनी ट्रेनिंग सेशन का टाइम बढ़ा दिया है
उस दौरान सौरव दिन के 6 घंटे नेट पर बिताया करते थे मेहनत और जिद के बाद सौरव ने 1993-1994 , 1994-1995 रणजी में अपने बल्ले से धूम मचा दी जो सिलसिला उन्होंने अगले साल भी बनाए रखा उस साल उन्होंने दिलीप ट्रॉफी में 171 रन की यादगार पारी भी खेली उसके बाद सौरव को भूल चुके चयनकर्ताओं ने उन्हें दोबारा याद किया
और साल 1996 में इंग्लैंड जाने वाली टीम में शामिल किया वहां जाकर गांगुली सक्सेस काउंटी टीम के कोच और महान बल्लेबाज डैसमेंट हैंड से मिले गांगुली ने उनसे कामयाब होने की टिप्स मांगी उन्होंने गांगुली को इंग्लैंड में घास वाली पिच में स्विंग होती गेंद को खेलने की तकनीक बताइ !
सौरव ने हेंड्स की हर बात पर गौर किया और खुद को इंग्लैंड के माहौल में ढाला जहां इंग्लैंड में एक तरफ भारतीय बल्लेबाज रनों को तरस रहे थे वही सौरव ने अभ्यास मैच में मुश्किल पिच पर 62 रनों की पारी खेली मगर श्रृंखला के पहले टेस्ट में उन्हें जगह नहीं मिली ! अब ऐसा लगा कि यह दौरा भी 1992 की तरह ही जाएगा लेकिन सौरव की किस्मत ने फिर जादू किया और उन्हें मौका मिल गया !
दरअसल उन दिनों नवजोत सिंह सिद्धू , कप्तान मोहम्मद अजहरूद्दीन से किसी बात पर नाराज थे पहले टेस्ट में मिली असफलता के बाद सिद्धू खुद को संभाल नहीं पाए और बिना किसी को बताए भारत लौट आए जिसके लिए भारत भारतीय टीम को बदनामी भी सहनी पड़ी !
मगर यह घटना सौरव गांगुली के लिए मौका लेकर आई और उन्होंने सीरीज के दूसरे टेस्ट मैच में सिद्धू की जगह टीम में शामिल किया गया इस तरह मौके के इंतजार में बैठे सौरव गांगुली का ऐतिहासिक लॉट्स में टेस्ट डेब्यु तय हुआ सौरभ ने जब टेस्ट करियर की पहली पारी खेलने उतरे तो भारतीय टीम दबाव में थी
सौरभ के पिच पर आते ही कुछ खिलाड़ियों ने फ्लेजिंग करना शुरू कर दिया और सीधे-सीधे कहें कि सौरव पर चारों तरफ से दबाव था ऐसा दुआओं जिसमें कोई भी खिलाड़ी बिखर सकता है लेकिन कुदरत ने दबाव सिर्फ सौरव गांगुली के लिए बनाया था जिसे बर्दाश्त करके एक साधारण बल्लेबाज का महान सौरव गांगुली बनने का सफर शुरू हुआ सौरव ने अपने डेब्यू में ही 171 रन बनाए और विश्व क्रिकेट में अपने आने का एलान कर दिया !
इस पारी से जुड़ी एक खास बात का जिक्र जरूरी है दरअसल तीसरे दिन लंच के वक्त सौरव लंच रूम में नहीं गए क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि खाने की वजह से उनकी एकाग्रता भंग होगी इसलिए वह बिना कुछ खाए ही खेलते रहे और 131 रन बनाकर सौरव पवेलियन लौटे तो स्टैंड पर मौजूद हर दर्शक ने खड़े होकर सौरव के जज्बे को सलाम किया !
शतक के बाद सौरव यहीं नहीं रुके उन्होंने ट्रेंट ब्रिज में भी शतक बनाया और पहले दो टेस्ट में शतक बनाने का जादूई रिकॉर्ड अपने नाम किया गांगुली की शानदार बल्लेबाजी के चलते भारत दोनों टेस्ट ड्रॉ करवाने में कामयाब रहा ! गांगुली को उनकी शानदार बल्लेबाजी के लिए मैन ऑफ द सीरीज अवार्ड मिला !
भारत लौटने पर गांगुली का जबरदस्त स्वागत हुआ बंगाल के मुख्यमंत्री बासु से लेकर अभिनेता मिथुन तक अपने सौरव को इनाम दिए ! इस तरह सौरव कुछ महीनों में ही बंगाल में रहने वाले हर इंसान के चहेते बने और यहीं से उन्हें किंग ऑफ कोलकाता का खिताब मिला इसके बाद सौरव ने हर मौके पर अच्छा प्रदर्शन किया और भारतीय बल्लेबाजी की रीढ़ बन गए !
अगले 5 सालों तक सौरव के खेल का ग्राफ चढ़ता रहा मगर भारतीय टीम की अंदरूनी कला के कारण फैंस के हिस्से में सिर्फ निराशा ही आई ऐसे में हुए अप्रैल 2000 में हुए फैक्शन खुलासे ने भारतीय क्रिकेट को हिला कर रख दिया सचिन तेंदुलकर ने कप्तान बनने से मना कर दिया भारतीय क्रिकेट अंधेरे में नजर आ रही थी तब जन्म हुआ कप्तान सौरव गांगुली का सौरव ने आगे बढ़कर टीम की जिम्मेदारी संभाली और इस तरह भारतीय क्रिकेट में शुरुआत हुई एक नए अध्याय की !