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भारतीय रेलवे ने लिया बड़ा फैसला यूरोप की टेक्नॉलजी के भरोसे नहीं बैठेगा भारत

भारतीय रेलवे सभी ट्रेन की सुरक्षा स्थिति यूरोप एंड टेक्नोलॉजी के भरोसे नहीं छोड़ना चाहती।इसके उलट भारत में मैन्युफैक्चरिंग सिस्टम को भारतीय रेलवे में आने की पूरी कोशिश की जा रही है और इस बार भी इसका रीजन हमारा आपको तभी का चूरन पड़ोसी है।अपने चूरन पड़ोसी की बात थोड़ी देर में करेंगे पर पहले इस खबर के बारे में जान लेते हैं। भारतीय रेलवे में दुर्घटनाओं को खत्म करने के लिए आने वाले सालों में 55000 करोड रुपए नृत्य जाएंगे और इसके अंतर्गत अलग-अलग सिगनलिंग और सिक्योरिटी सिस्टम्स भारतीय रेलवे इन्फ्राट्रक्चर में शामिल होंगे। सिग्नल इंफॉर्मेशन के चलते भारतीय रेलवे के पास अभी तक दो अखिलेश मौजूद है।पहले यूरोपियन ट्रेन कंट्रोल सिस्टम यानी इसको बहुत यूरोपियन कंपनी आज की डेट में मेरे पास चेक करती है।

भारतीय रेलवे ने लिया बड़ा फैसला यूरोप की टेक्नॉलजी के भरोसे नहीं बैठेगा भारत

 जैसे ए स्ट्रांग बंबा डियर एंड चाइल्ड ओं थे और इन्वेंसिस दूसरे ट्रेन कॉलेज वोटिंग सिस्टम यानी पीएसीएल जिसको आरडीएसओ दो भाटी कंपनी के साथ मिलकर डिजाइन और डब्लू करी है और दो कंपनी से मैदा और करने। इसके अलावा रेलवेज दो और भारतीय कंपनी को भी रेलवे की मॉडर्न सिगनलिंग सिस्टम डेवलपमेंट फास्ट करने के लिए शामिल करना चाहती हैं। यूरोप और भारतीय टेक्नोलॉजी के बीच हमारा चूरन पड़ोसी कहां से आए। इसके बारे में हम आपको आगे बताएंगे और यूरोपियन ईटीसीएस और भारतीय पीएसीएल के बारे में हम आपको कुछ जरूरी बातें बताना चाहते हैं।

भारतीय रेलवे ने लिया बड़ा फैसला यूरोप की टेक्नॉलजी के भरोसे नहीं बैठेगा भारत

इंडियन रेलवेज अपनी सुरक्षा के लिए फिलहाल पूरी तरह से यूरोपियन कंपनी पर निर्भर है। एग्जांपल के तौर पर डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर में यूरोपियन कंपनी एल्बम के मैन्युफैक्चर्ड सिगनलिंग सिस्टम का इस्तेमाल होता है।हालांकि कुछ छोटे-छोटे सेक्शन में भारतीय किए जा रहे हैं, पर अभी तक टेस्टिंग के दौरान जो बातें सामने निकल कर आई है, वह हैरान कर देने वाली है। भारतीय पीएसीएस और यूरोपीय निवेश की परफॉर्मेस में काफी कम अंतर है।भारतीय सेफ्टी सिस्टम्स डेवलपिंग स्टेज में है पर यूरोप एंड टेक्नोलॉजी के बराबर आने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। पर ऐसी दो बातें हैं जिसकी वजह से रेलवेज यूरोपियन सिस्टम की बजाय तो देसी सिगनलिंग सिस्टम करना चाहती हैं।भारतीय सिगनलिंग सिस्टम यूरोपीय सिस्टम से कहीं ज्यादा सस्ता है और इस सिस्टम की जो एक लोकोमोटिव के ट्रैक पर इस्तेमाल किए जाते हैं, उनको पूरी तरीके से भारत में मैंने पैक चेक किया जाता है और यही एंट्री होती है हमारी कुर्सी की यूरोपीय मीटिंग सिस्को मेनी फैक्टर करने वाली कंपनी अपने ज्यादातर इक्विपमेंट्स जाना में या तो खुद मैन्युफैक्चर करती है या फिर किसी चाइनीस में इंफेक्शन से कौन ट्रैक्टर बनाती है और इसी को देखते हुए सिस्टम से ज्यादा सुरक्षित भरोसेमंद है।

भारतीय रेलवे ने लिया बड़ा फैसला यूरोप की टेक्नॉलजी के भरोसे नहीं बैठेगा भारत

आपको बता दें कि मेधा और कनेक्ट भारत में डेवलप स्वदेशी सिस्टम को पेटेंट कराने के लिए आर्डर फिकेशन दे चुके हैं और इन दोनों कंपनी का ऑफिस के मुताबिक सिग्नल सिस्टम के लॉन्च होने के बाद इंस्टॉल करने में काफी कम टाइम लगेगा। तू किसकी ज्यादातर डेवलपमेंट अल्ट्रा इस पूरे किए जा चुके हैं। रेलवे बोर्ड के मेंबर संजीव मित्तल जी ने की। वचन मीटिंग में कहा कि भारतीय टीसीएस को पूरे भारतीय रेलवे समय में पेंट करने के लिए डिसीजन ले लिया गया है और उनके शब्दों से तो यही लगता है कि भारतीय रेलवे की सुरक्षा की स्वदेशी सिगनलिंग सिस्टम ही करेगा और इस उद्देश्य सिस्टम मेड इन इंडिया होगा। हालांकि इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता कि तो देश इस सिस्टम के कुछ कॉम्पोनेंट्स और सब फैमिली अभी भी चाहने से इंपोर्ट किए जाएंगे क्योंकि भारत में इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग का विस्तार अभी पूरी तरीके से नहीं हुआ है।  

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