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ऐसा दौर जब घोड़ों को भी मास्क लगाना पड़ता था फिर हम तो इंसान है

एक वक्त था जब चेहरा ढकने के लिए मास्क का इस्तेमाल केवल बैंक चोर , पॉप स्टार और स्वास्थ को लेकर बेहद सतर्क रहने वाले जापानी पर्यटक करते रहते थे लेकिन आज के दौर में मास्क पहनना इतना आम हो गया हैं की इसे न्यू नार्मल कहा जाता हैं ! मास्क का इस्तेमाल सामान्य जरूर हो सकता हैं लेकिन ये इतना भी नया नहीं हैं ! ब्लैक प्लेग से लेकर वायु प्रदूषण के बुरे दौर तक और ट्रैफिक के कारण प्रदूषण से लेकर रसायनिक गैस के हमलों तक बीते 500 सालों में दुनियां भर के लोगों ने मास्क का इस्तेमाल किया हैं कहा जाता हैं की चेहरा छिपाने से लेकर खुद को संक्रमण बचाने के लिए कम से कम 6 ईसवी पूर्व से मास्क का इस्तेमाल होता आया हैं !

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ऐसा दौर जब घोड़ों को भी मास्क लगाना पड़ता था फिर हम तो इंसान है

फारस के मकबरों के दरवाजे पर मौजूद लोग अपने चेहरे को कपड़ो से ढक कर रखते थे ! मार्को पोलो के अनुसार 13 वीं सदी के चीन में नौकरों को बुने हुए स्कार्फ़ से अपने चेहरे को ढकना होता था ! इसके पीछे धारणा ये थी की सम्राट के खाने की खुशबू या फिर उसका स्वाद किसी और व्यक्ति के सांस की वजह से न बिगड़ जाए ! 14 वीं सदी में ब्लैक डेथ प्लेग सबसे पहले यूरोप में फैलना शुरू हुआ 1347 से लेकर 1351 के बीच इस बीमारी के यहां 250 लाख लोगों की मौत हो गयी ! इसके बाद यहां के डॉक्टर ख़ास मेडिकल मास्क का इस्तेमाल करने लगे ! कुछ लोगों का मानना हैं की जहरीली हवा के कारण मानव शरीर में असंतुलन पैदा होने लगा ऐसे में प्रदूषित हवा को शरीर में पहुंचने से रोकने के लिए लोगों ने अपने चेहरे को ढका या फिर खुशबूदार इत्र और फूल लेकर घरो से बाहर निकलने लगे ! 17 वीं सदी के मध्य में प्लेग के दौरान इसके प्रतीक के रूप में चिड़िया के आकार वाले मास्क पहने एक व्यक्ति चित्र भी देखा जाने लगा ! जिसे कई लोग मौत के परछाई के नाम से इसे पुकारने लगे ! ब्लैक प्लेग में इस्तेमाल किये जाने वाले मास्क को खुशबूदार जड़ी बूटियों से भरा जाता था ! ताकि गंध को शरीर के भीतर पहुंचने से रोका जा सके ! इसके बाद के वक्त में भी इस तरह के मास्क का इस्तेमाल होता रहा ! जिसमें खुशबूदार जड़ी बुटिया भरा जाता था ! 1665 के दौर में आयी ग्रेड प्लेग के दौरान मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टर चमड़े से बना ट्यूनिक आंखो पर कांच के चश्मे हाथो में ग्लब्स और सिर पर टोपी पहना करते थे ! कहा जा सकता हैं की ये उस दौर के p . p किट की तरह था !

 

ऐसा दौर जब घोड़ों को भी मास्क लगाना पड़ता था फिर हम तो इंसान है

प्रदूषण के कारण धुंध > 18 वीं सदी के आद्योगिक क्रान्ति ने लंदन को एक ख़ास तोफा दिया था ! उस दौर में बड़ी संख्या में फैक्ट्रियां अधिक से अधिक प्रदूषित धुंआ उगल रही थी और घरों में कोयले से जलने वाले चूल्हो से लगातार धुंआ निकलता रहता था ! उस दौर में सर्दियों के दिनों में लंदन शहर के ऊपर कई सालों तक धुंध की एक स्लेटी पीले रंग की एक मोटी परत देखने को मिली थी ! साल 1952 में दिसंबर महीने के 5 तारीख से लेकर 9 तारीख के बीच अचानक यहां कम से कम 4000 लोगों की मौत हो गयी थी ! एक अनुमान के अनुसार इसके बाद के सप्ताहों में करीब 8000 और लोगों की मौत हो गयी ! साल 1957 के दिसम्बर में 1000 लोगों की मौत हो गयी ! इसके बाद साल 1962 मे यहां करीब साढ़े 700 लोगों की मौत हो गयी ! शहर में फैली धुंध की चादर इतनी मोटी थी की सरकार के लिए ट्रेने चलाना मुश्किल हो गया था ! इस दौरान शहर के आस पास के खेतों में दम घुटने से जानवरों के मरने की भी खबर आने लगी ! साल 1930 में यहां लोगों ने टोपी लगाने के साथ साथ मास्क पहनना भी शुरू कर दिया था ! 1956 और 1968 में चिमनी से निकलने वाले प्रदूषित काले धुंए को कम करने के लिए और फैक्ट्री से निकलने वाले धुंए में धुंध के कड़ों को सीमित करने के लिए क्लीन एयर क़ानून बनाया गया ! इस क़ानून के साथ साथ चिमनी की ऊंचाई और उसकी जगह भी तय की गयी !

 

ऐसा दौर जब घोड़ों को भी मास्क लगाना पड़ता था फिर हम तो इंसान है

जहरीली गैस > दूसरे विश्वयुद्ध और उसके 20 साल बाद के ग्रेट वार्बलर में रसायनिक हथियार क्लोरीन गैस और मस्टर्ड गैस का इस्तेमाल हुआ ! इसके बाद सरकारों को आम जनता और सैनिकों से कहना पड़ा की वो खुद को जहरीली गैस से बचाने के लिए विशेष प्रकार का मास्क इस्तेमाल करे ! 1938 में सड़कों पर आमतौर पर respirometer का इस्तेमाल करते देखा जाने लगा ! इस साल सरकार ने आम लोग और सैनिकों में लगभग साढ़े 3 करोड़ ख़ास तरह के respirometer बाटे ! इन्हे पुलिस वाले को भी निजी प्रोटेक्टिव के तौर पर दिया गया था ! ये वो दौर था जब जानवरों को बचाने के लिए उनके लिए भी मास्क बनाये गए ! चिड़िया घर में जानवरों के चेहरे का नाप लिया गया था ताकि उनके चेहरों को लिए ख़ास तरह के मास्क बनाये जा सके ! घोड़ो के चेहरे पर जो मास्क लगाया गया था ! वो एक थैले की तरह दिखाई देता था ! जिससे उसकी नाक ढक जाती थी !

 

ऐसा दौर जब घोड़ों को भी मास्क लगाना पड़ता था फिर हम तो इंसान है

यातायात के कारण प्रदूषण > 19 वीं सदी के लंदन में पढ़ी लिखी महिलाओं की संख्या काफी थी ! जो अपनी त्वचा को ढक कर रखना पसंद करती थी ! वो गहनों के साथ साथ बड़े बड़े गाउन पहनना पसंद करती थी और चेहरे को भी एक जालीदार कपडे से ढक कर रखना पसंद करती थी ! हालांकि की ये बात सच हैं की इस तरह के पूरा शरीर ढकने वाले लम्बे चौड़े या गाउन अधिकतर लोक सभाओं में पहने जाते थे लेकिन ऐसा नहीं हैं की और मौकों पर महिलाएं इन्हे पहनना पसंद नहीं करती थी ! ये कपडे खासकर चेहरे पर जालीदार कपड़े उन्हें सूरज की तेज रोशनी के साथ साथ बारिश धूल के कड़ों और प्रदूषण से बचाता था लेकिन 19 वीं सदी तक वायु प्रदूषण इतना बढ़ गया था की चेहरे को ढकने वाले जालीदार कपड़े वायु में फैले कड़ों को रोकने में नाकाम साबित होने लगे !

 

ऐसा दौर जब घोड़ों को भी मास्क लगाना पड़ता था फिर हम तो इंसान है

स्पेनिश फ्लू > प्रथम विश्ययुद्ध ख़त्म होने के बाद दुनियां के कुछ देशों में एक अलग चुनौती खड़ी हो गयी ! स्पेन में सबसे पहले फ्लू फैलना शुरू हुआ जहां इसने महामारी का रूप ले लिया था ! इस महामारी ने यहां 5 करोड़ लोगों को अपना शिकार बनाया ! स्पेन से फैलना शुरू होने के कारण इसे स्पेनिश फ्लू नाम दिया गया ! माना जाता हैं की उत्तरी फ्रांस से ट्रक से लौट रहे सैनिकों के साथ ये वायरस तेजी से फैलना शुरू हुआ था ! कई कंपनियों में इस दौरान वायरस को रोकने के लिए ट्रेनों और बसों पर दवाई का छिड़काव शुरू किया ! सैनिक ट्रकों और कारों में भर भर कर अपने देश लौट रहे थे ! इसे ये बेहद संक्रामत बीमारी और तेजी से फैली ये संक्रमण ट्रेन और स्टेशनों पर फैला और फिर शहर के समुदायिक केंद्रों शहरों और फिर गांवो तक फ़ैल गया ! लंदन जनरल ओमनी हॉस्पिटल ऑपरेशन जैसे कंपनियों ने तेजी से फैलने वाली फ्लू पर काबू पाने के लिए ट्रेनों और बसों में दवा का छिड़काव शुरू किया ! उन्होंने अपने सभी कर्मचारियों से कहा की वो संक्रमण से बचने के लिए मास्क पहनना शुरू कर दें ! साल 1918 में प्रकाशित नर्सिंग टाइम्स पत्रिका में ये बताया गया की इस बीमारी से बचने के लिए क्या जरुरी कदम उठाने चाहिए ! इसमें इस विषय पर विस्तार से जानकारी दी गयी थी की किस तरह संक्रमण को रोकने के लिए हॉस्पिटल के नर्सो ने 2 मरीजों के बेड के बीच में दीवार बनाई थी और अस्पताल में प्रवेश करने वाले सभी डॉक्टरों नर्सो और सहायको के लिए अलग अलग बैठकों की व्यवस्था की थी ! इस दौरान स्वस्थ कर्मी फुल बॉडी शूट पहनते थे और चेहरे पर मास्क का इस्तेमाल करते थे ! आम लोगों को भी सलाह दी गयी की वो अपनी जान बचाने के लिए मास्क का इस्तेमाल करें ! कई लोगों ने खुद के लिए अपने मास्क बनाये और कई लोग तो नाक के नीचे पहने जाने वाले मास्क में विष इन्फेक्टेड की बूंदे भी डाला करते थे ! बाद में एक और तरह का मास्क चलन में आया ये एक तरह का बाद कपडा हुआ करता था ! जो पूरे चेहरे को ढकने में मदद करता था ! कई जाने माने लोग अपने फ्रेंड से चेहरा छिपाने के लिए या फिर अपने दुश्मनों से छिपने के लिए इसका इस्तेमाल करते थे ! इस दौर में चेहरा ढक़ना दूसरो का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश जैसा था लेकिन आज ये हकीकत बदल चुकी हैं ! आज मास्क लगाना इतना आम हो चूका हैं की मास्क लगाने वाले पर किसी का ध्यान ही नहीं जाता चाहे वो किसी भी तरह का मास्क क्यों न हो !   धन्यवाद !

 

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