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एक ऐसा प्रधानमंत्री जो खुद को माफिया डॉन का दोस्त बताता था

एक ऐसे शख्स  जिसे प्रधानमंत्री डरा करते थे , इंदिरा गाँधी डरा करती थी , मोरार जी देसाई डरा करते थे , चौधरी चरण सिंह डरा करते थे , विश्व नाथ प्रताप सिंह डरा करते थे और राजीव गाँधी भी डरा करते थे उनको यह डर था की यह शख्स प्रधानमंत्री बनना चाहता है उसने जिंदगी में कभी लाल बत्ती नहीं ली वो सिर्फ सांसद रहा और लगातार मंत्री के पद ठुकराता रहा और जब बना तो देश का प्रधानमंत्री बना मैं बात कर रहा हूँ

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बलिया के बाबू साहब की देश के प्रधानमंत्री रहे चंद्रशेखर की ! बलिया में पैदाहुए और इलाहाबाद में पढ़े चंद्रशेखर ने अपनी जिंदगी में खूब पार्टियां बदली और बनाई ! शुरुआत हुई 1951 में सोशलिस्ट पार्टी से फिर वो लोहिया के दल में चले गए ! चंद्रशेखर लोहिया का चेला बनने के लिए नहीं बल्कि उनसे किये गए झगड़ों के लिए याद किये जाते है !

पहला झगड़ा>चंद्रशेखर इलाहबाद पहुंचे उस समय के एक संत समाजवादी नेता आचार्य नरेंद्र देव को आमंत्रित करने के लिए ! बलिया में छात्रों कीएक सभा थी आचार्य बीमार थेपर डॉक्टर लोहिया मौजूद थे आचार्य नरेंद्र देव ने कहा की आप डॉक्टर लोहिया को ले जाइये लोहिया बोले मुझे तो अपनी पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक के लिए कलकत्ता जाना है मैं कैसे जा सकता हूँ ?

एक ऐसा प्रधानमंत्री जो खुद को माफिया डॉन का दोस्त बताता था

चंद्रशेखर नेतुरंत समाधान पेश किया बोले आप हमारे साथ चलिए और वहां से मैं आपको जीप में बक्सर छोड़ दूंगा जहाँ से आपको कलकत्ता की ट्रैन मिल जाएगी लोहिया तैयार हो गए लेकिन जैसे ही वो रेलवे स्टेशन पर बलिया के उतरे बोले जीप कहाँ है ?

उन्होंने कहा डॉक्टर साहब जीप आपको शाम को चाहिए , डॉक्टर साहब बड़बड़ाने लगे चंद्रशेखर को यह बात न ग्वार लगी उन्हें लगा की अगर में एक युवा नेता हूँ और इतने बड़े नेता को अपने यहाँ आमंत्रित कर रहा हूँ तो जाहिर सी बात है की मैंने अपने कहे का मान रखा होगा

लेकिन लोहिया दोपहर तक बड़बड़ाते रहे चंद्रशेखर ने गुस्से में कह दिया डॉक्टर साहब वो खड़ी हैआप की जीप वो रहा रास्ता हमें आपकी सभा और सदाहरतकी जरूरत नहीं है आप बेज्जती मत करिये कृपया करके चले जाइये ! लोहिया सन्नरह गए शायद यह पहले मौका था

जब किसी युवा ने युतंन कर उनकी बात का प्रतिकार किया ! जब चंद्रशेखर उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खास बन गए कॉंग्रेसनेउन दिनों एक कर्म चला करता था युवा तुर्कयानी ऐसे युवा नेता जो उग्र थे पुरातन पंथी नहीं थे और कांग्रेस में समाजवादी विचारधारा को फैलाना चाहते थे इसमें चंद्रशेखर थे , इसमेंकृष्णकांत थे , इसमें मोहनलाल धारिया थे , इसमें रामधन थे उन्हीं दिनों का एक वाक्य है जब शाम के वक्त इंदिरा गांधी के आवाज पर तमाम नेता जूटाकरते थे

एक ऐसा प्रधानमंत्री जो खुद को माफिया डॉन का दोस्त बताता था

देश और दुनियां के विषयों पर चर्चा करने के लिए इंद्र कुमार गुजराल के सभापतितवमें एक किस्म का अनौपचारिक विचार विमर्श हुआ करता था गुजराल के बहुत कहने पर एक बार चंद्रशेखर भी वहां पहुंचे और उस दिन इंदिरा गाँधी भी वहां मौजूद थी इंदिरा गाँधी ने कहा चंद्रशेखर क्या तुम कांग्रेस को समाजवादी मानते हो चंद्रशेखर ने कहा थोड़ा सा मानता हूँ और थोड़ा सा मनवाना चाहता हूँ इसलिए आ गए !

इंदिरा ने पूछा इसके क्या मायने है चंद्रशेखर ने कहा कांग्रेस एक बूढ़े बरगद की तरह हो गई है अगर में इसको समाजवादी रुख की तरफ नहीं मोड़ सका तो पार्टी को तोड़ दूंगा ! वो देश की प्रधानमंत्री वो कांग्रेस की अध्यक्ष और उनके सामने उनका बनाया हुआ एक सांसद इस तरीके से बगावत की बात कर रहा था

लेकिन उस वक्त इंदिरा को इन युवा तुर्कों की जरूरत थी क्योंकि इंदिरा पार्टी में ओल्ड गार्ड के खिलाफ चुनाव लड़ रही थी वो सत्ता पर और पार्टी पर अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहती थी !

1971 के दौर में जब उन्होंने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया , प्रिवी पर्स खत्म किये और समाजवाद का नारा दिया , गरीबी हटाओ के नारे पर चलकर सत्ता में लौटी तो उसके बाद युवा तुर्कों की एहमियत खत्म हो गई और इसीलिए चंद्रशेखर उन चुनिंदा कांग्रेस नेताओं में से एक थे जिन्हें एमरजेंसी लगाई जाने के बादविपक्ष के नेताओं के साथ गिरफ्तार कर लिया गया

एक ऐसा प्रधानमंत्री जो खुद को माफिया डॉन का दोस्त बताता था

चंद्रशेखर को पटियालाकी जेल में डाल दिया गया और बाबूसाहब ने जेल में रहते वक्त सिर्फ एक काम किया पटियाला की जेल में खाली पड़े मैदान कोबगीचे में तब्दील कर दिया पटियाला की जेल में तो फूल खिल गए मगर चंद्रशेखर की जिंदगी में सफलता के फूल खिलने में अभी भी 13 वर्ष वाकीथे 1977 में चुनाव हुए विपक्षी दलों ने गठ्जोड़करके जनता पार्टी बनाई प्रधानमंत्री पद के लिए तीन दावेदार थे मोरारजी देसाई , चौधरी चरण सिंह और बाबू जगजीवन राम !

चंद्रशेखर को जनता पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया था वो सबसे ज्यादा जिस नाम के खिलाफ थे वो था मोरार जी देसाई का नाम लेकिन जेपीके कहने पर वो मान गए लेकिन एक बात उन्होंने जेपीकी नहीं मानी और वो बात थी मोरार जी देसाई की कैबिनेट में मंत्री का पद स्वीकार करना !

चंद्रशेखर जनता पार्टी के अध्यक्ष बने रहे और हम सब जानते है की दो ढाई वर्षमें ही यह कुनवाआपसी वीतर घात के चलते एक दूसरे पर अविश्वास के चलते और प्रधानमंत्री के पद पर कई दावेदारों के चलते टूट गया बिखर गया !उन दिनों का एक किस्सा मुझे याद आ रहा है जब बाबू जगजीवन राम ने जनता पार्टी पर अपने नेतृत्व की दावेदारी ठोकदी कहा गया की उनकोजय प्रकाश नारायण का आशीर्वाद है !

एक ऐसा प्रधानमंत्री जो खुद को माफिया डॉन का दोस्त बताता था

चंद्रशेखर बाबू जगजीवन राम के राजनैतिक विरोधी थे उनके राजनैतिक तौरतरीकों से इतिफाक नहीं रखते थे , एक बजह यह भी थी की बाबू जगजीवन राम सबसे आखरी में कांग्रेस की नैया छोड़कर जनता पार्टी की पतवार पकड़ने बाले नेता थे

लेकिन चंद्रशेखर को जब पता चला की जेपी ने भीआशीर्वाद दे दिया है तो वो जगजीवन राम के साथ हो लिए हालाँकि बाद में उन्हें पता चला की जिस चिठ्ठी के सहारे उन्हें मनाया गया है वो चिठ्ठी जयप्रकाश नारायण को ऐसी हालत में दिखाई गई थी

जब वो ठीक से पढ़ भी नहीं सकते थे , उनकी सेहत बहुत खराब थी और बाद में बकौल चंद्रशेखर जब जेपी को यह पताचला की उनके झूठे खत और दस्तखत के जरिये चंद्रशेखर को लाइन पर लाया गया है तो वो फुट फुट कर रोने लगे और उन्होंने इतना ही कहा मैं तो यह चाहता था

की 77 में ही चंद्रशेखर देश के प्रधानमंत्री बन जाएं ! इस तरह की बातें कहकर चंद्रशेखर क्या कहना चाहते थे , क्या संदेश देना चाहते थे क्या यह की युवा तुर्कों की सही नुमाइंदगी वही कर रहे थे और सत्ता के शीश पर असली दावेदारी उन्हीं की थी ! 11 नवंबर 1990 को बलिया कीइब्राहिम पट्टी में पैदा हुए उस नौजवान का सपना पूरा हो गया मैं उस शख्स को नौजवान क्यों कह रहा हूँ

क्योंकि वो अपनी पूरी जिंदगी सियासत में धरा के उल्ट चलता रहा पद के लोभ से दूर जाता रहा और बेबाकी ऐसी की खुले आम कह देता था की हाँ जिन्हें आप माफिया कहते हैवो सूर्य देव सिंह मेरे दोस्त है ! ऐसा बेबाक चंद्रशेखर जब प्रधानमंत्री बना तो उसने शुरूआती कुछ हफ्तों में ही यह साफ़ कर दिया की मैं कांग्रेस की कठपुतली नहीं हूँ

एक ऐसा प्रधानमंत्री जो खुद को माफिया डॉन का दोस्त बताता था

और राजीव गाँधी के इशारों पर नहीं नाचूंगा जाहिर सी बात है की जैसे इंदिरा ने चौधरी चरण सिंह से समर्थन वापस लिया था राजिव गाँधी को वो करना ही था वो थोड़ सा राजनैतिक वक्त चाहरहे थे ताकि अपने संगठन की चुने कर सकें और अगले चुनाव के लिए संगठन को फिर से तैयार कर सके और इसके लिए बहाना बने हरियाणा पुलिस के दो सिपाही !

दरअसल राजीव गाँधी के घर के बाहर हरियाणा पुलिस के दो सिपाही संदिग्ध हालत में घूमते पाए गए हल्ला मच गया राजनैतिक गलियारों में कहा जाने लगा की चंद्रशेखर उस शख्स की जासूसी कर रहे है जिसके समर्थन के बल पर वो प्रधानमंत्री बने बैठे है और शाम को राजिव से चंद्रशेखर की मुलाकात हुई !

चंद्रशेखर ने आश्वासन दिया की इस मामले की पूरी जांच की जाएगी और मैं व्यक्तिगत रूप से इसकी निगरानी करूँगा ! अगले दिन लोकसभा का सतरथा इसलिए हंगामा खेज होने के आसार थे लेकिन चंद्रशेखर को झटका तब लगा जब उन्हें पता चला की इस कथितजासूसी काण्ड के चलते कांग्रेस लोकसभा का वहिष्कार करने बाली है चंद्रशेखर को समझ में आ गया था की उनकी सात महीने पुरानी सरकार के लिए राजनितिक ऑक्सीजन खत्म हो चुकी है

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