अमरीश पुरी की वास्तविक जीवनी सुनकर आपकी भी आंखें खुल जाएगी

एक ऐसा खलनायक जो 40 साल के उम्र में फिल्म इंडस्ट्री में आया। एक ऐसा विलेन जो पहले ही स्क्रीन टेस्ट में फेल हो गया था। एक ऐसा अभिनेता जो 21 साल तक सरकारी नौकरी करता रहा। वो रहा खलनायको का खलनायक जिसकी फिल्म इंडस्ट्री पर थी इमेज स्केरी अमरीश पूरी। अमरीश पूरी का जन्म 22 जून 1932 को पंजाब के नवा शहर में हुआ था। इनके पिता जी का नाम था लाला निहाल चंद और माता जी का नाम था वेद कौर इनके चार भाई बहन थे। बड़े भाई चमन पूरी और मदन पूरी बड़ी बहन चंद्रकांता और छोटे भाई हरीश पूरी। अमरीश पूरी तीन भाइयों और बहनों में चार नंबर पर आते थे और आपको बताये की चमन पूरी और मदन पूरी इनके दोनों बड़े भाई आलरेडी फिल्म नाइन में estavlish थे और मदन पूरी तो जानेमाने खलनायक रहे हैं बॉलीवुड इंडस्ट्री के अमरीश ने अपनी शुरूआती पढाई की थी पंजाब से और उसके बाद वो अपना कॉलेज करने के लिए बी एम कॉलेज शिमला चले गए। वहां पढाई करने के दौरान इनके मन में भी ख्याल आता था की मैं भी फिल्म एक्टर बनू।
अपने बड़े भाइयों की नक़्शे कदम पर चलूं ऐसा ही सोचते हुए ये फिर मुंबई आ गए। उस वक्त का बॉम्बे आज का मुंबई। जब ये मुंबई पहुंचे तब इनके भाई मदन पूरी बहुत जानेमाने खलनायक बन चुके थे लेकिन उन्होंने कहां अमरीश पूरी को की आपको अपना स्ट्रगल खुदकरना हैं। अमरीश अपनी फोटोग्राप्स लेकर हर प्रोडक्शन हाउस तक पहुंचते पहुंचते और कहते मैं हीरो बनना चाहता हूँ लेकिन सभी ने इनकी फोटोज को रिजेक्ट कर दिया और कहां आप हीरो बिलकुल नहीं लगते नहीं बन सकते और तो और एक डायरेक्टर ने ये भी कहा की आप हीरो तो कभी बन नहीं सकते लेकिन हां आपके चेहरे में एक गुंडापन एक बदमाशपन हैं एक नकारात्मक भूमिका हैं तो आपको विलेन बनना चाहिए। ये बात इनको बहुत दर्द कर गयी गुस्सा भी बहुत आया और आखिकार इन्होने एक्टिंग से तौबा करने का फैसला कर लिया और इन्होने एक्टिंग का सपना छोड़कर नौकरी की तलाश करना शुरू कर दिया और इन्हे नौकरी मिल भी गयी वो भी सरकारी नौकरी एम्प्लाइज स्टेट इंसोरेंस कारपोरेशन मिनिस्ट्री ऑफ लेबर एंड एम्प्लॉयमेंट इस विभाग में इन्हे नौकरी मिली और 21 साल तक इन्होने वहां पर नौकरी भी की और नौकरी के दौरान ही इनका लगाव फिर से एक्टिंग की तरफ होने लगा फिर इन्होने शौकिया थिएटर करना शुरू कर दिया।
थिएटर के लिए इन्हे प्रोत्साहित किया था जानेमाने ड्रामा फील्ड के नाम इब्राहिम एलकाजी साहब ने। इब्राहिम एलकाजी ने अमरीश पूरी को नाटकों में काम करने के लिए प्रेरणा दी और कहा एक्टिंग करनी हैं तो नाटकों से जुड़ो और अपने शौक को मरने मत दो अपना शौक पूरा करो और वो साल था 1961 जब रघुमंच पर एक कलाकार निकलकर आया और वो नाम था अमरीश पूरी बाद में फिर महान रणकरनी और नाटककार पंडित सत्यदेव दूबे और गिरीश करनाहट जी से इनके संपर्क हुए और उनके नाटकों में अक्सर असिस्टेंट के रूप में अमरीश पूरी काम करने लगे। अमरीश पूरे ने अपने पूरी जिंदगी में एक ही बात कही अगर मेरा कोई गुरु हैं तो वो हैं पंडित सत्यदेव दूबे जिन्होंने मुझे एक्टिंग के लिए आगे के लिए प्रोत्साहित किया। सत्यदेव दूबे के बहुत से नाटकों में अमरीश पूरी अभिनय करते नजर आते थे।
मुंबई के पृथ्वी थिएटर पर भी उनके अभिनय की छाप दिखलाई देने लगी। बहुत सी नाटकों में इनका अभिनय सरहा गया और 1979 में इन्हे एक्टिंग के लिए नाट्य जगत के एक जानेमाने अवार्ड से नवाजा गया और वो अवार्ड था संगीत नाटक अवार्ड और नाटकों में काम करने के दौरान ही इनको फिर टीवी एडवोटेजमेंट और फिल्मों में भी छोटी मोटी भूमिका मिलने लगी। 40 साल की उम्र होते होते फिल्मों में छोटी मोटी भूमिकायेंनिभाने लगे अमरीश पूरी लेकिन नौकरी फिर भी चालू थी। इनकी पहली फिल्म थी मराठी भाषा में बनी सत्यदेव दूबे के डायरेक्शन में बनी फिल्म शांतताकोर्ट चालू आहे। इसमें इन्होने एक ब्लाइंड सिंगर की भूमिका निभाई थी जोकि रेलवे स्टेशन पर गाया जाता हैं। ये सन्न 1971 की फिल्म थी। बॉलीवुड की गलियारों में एक किस्सा बहुत मशहूर हैं एक नाटक के मंचल के दौरान एक फिल्म के निर्देशक ने अमरीश पूरी को स्टेज पर एक्टिंग करते हुए देखाऔर वो इनके अभिनय के कायल हो गए और उसी वक्त उस निर्देशक ने इन्हे रेशमा और शेरा फिल्म ऑफर कर दी थी।
जिस फिल्म को इनकीडेविल फिल्म कहा जाता हैं लेकिन अगर पहली फिल्म की बात करें। तो प्रेम पुजारी देवानन की वो फिल्म जिसमे पहली बार इन्होने अभिनय किया। 1970 की दौर में अमरीश पूरे ने फिल्मों में छोटी मोटी भूमिकायें निभाना शुरू किया और इन्हे अक्सर सपोर्टिंग किरदार मिलते थे। जोकि गुंडों के पीछे खड़ा हुआ एक गुंडा यानि उसका गुरगाह ऐसे रोल हुआ करते थे। या तो उनके डायलॉग नहीं होते थे या फिर होते भी थे तो एक या दो लाइन का डायलॉग ऐसे किरदारों की फिल्म में कोई ख़ास पहचान नहीं होती लेकिन इनकी एक्टिंग मुसलसल जारी रही और आखिरकार फिर साल आया 1980 वो निर्माता थे बोनिल कपूर जिन्होंने अमरीश पूरी के अभिनय को पहचाना और इन्हे अपनी फिल्म हम पांच में मेन विलेन के रोल में मुख्य खलनायक के रूप में प्रस्तुत कर दिया। 1980 में आयी ये फिल्म काफी हिट रही और हिट रहा अमरीश पूरी का ये किरदार जिसका नाम था वीर प्रताप सिंह और इस रोल के साथ ही इनके एक्टिंग के प्रताप को पूरी दुनियां ने पहचाना।
फिर 1982 में सुभाष घईने अपनी फिल्म में इन्हे जगावर चौधरी बनाया। जिसमे अमरीश पूरी के सामने थे दिलीपकुमार शम्मी कपूर और संजीव कुमार जैसे नामीं एक्टर। फिल्म का नाम था विधाता जिसमे अमरीश पूरी एक स्मगलर के रोल में नजर आये थे। इसी साल 1982 में इन्हे एक और फिल्म मिली। शक्ति जिसमे अमिताभ बच्चन और फिर से इन्हे दिलीप कुमार के साथ काम करने का मौक़ा मिला और फिर 1983 का सालआया तब सुभाष घई ने फिर से अमरीश पूरी को याद किया और फिल्म बनी हीरो जैकी श्रॉफ और मीनाक्षीशेषाद्रि के लव स्टोरी में विलेन पाशा का रोल कौन भूल सकता हैं। इसके बाद तो सुभाष घई कीहर फिल्म में परमानेंट विलेन बन गए अमरीश पूरी और फिर अमरीश पूरी ने पलटकर कभी नहीं देखा। 1980 से लेकर 1990 तक की किसी भी फिल्म को उठा करके हम अगर देखते हैं तो हर दिल में विलेन नजर आते हैं अमरीश पूरी। अगर हम स्ट्रगल कीलाइफ को देखें तो 20 साल के लम्बे संघर्ष के बाद टिके रहने पर येअचिरमेट मिला बेस्ट विलेन का ड्रीम पूरा हुआ और 21 साल के उम्र में मिले उस कास्टिंग डायरेक्टर की बात भी याद आयी की तुम हीरो नहीं लगते तुम विलेन की तरह दिखते हो।
आपको जानकार आश्चर्य होगा के अमरीश पूरी जी ने आमिर खान को बहुत जबदस्त डांटा भी था एक बार फिल्म थी जबरदस्त और वो साल था 1985 जब आमिर खान फिल्मों में एक्टर नहीं हुआ करते थे। असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर वो नासिरहुसैन साहब को असिस्ट कर रहे थे। अमरीश पूरी किसी कॉन्टिनिटीवाले सीन में कुछ भूल रहे थे और आमिर खान बार बार बता रहे थेकी सर आपका पिछला सीन ऐसा था और अब कॉन्टिनिटीमें इस तरह से करना हैं। अमरीश पूरी को ये बार बार समझाना रास नहीं आया और उन्होंने पूरी यूनिट के सामने इस लड़के यानि आमिर खान को बुरी तरह से डांट दिया और आमिर खान गर्दन झुकाये खड़े रहे और एक शब्द भी इन्होने नहीं कहा। येबात और हैं की फिर अमरीश पूरी ने आमिर खान से बाद में माफी मांग ली थी। ऐसे थे अमरीश पूरी। हॉट भी और कूल भी। खलनायको का खलनायक अमरीश पूरे को इस लिए कहा गया क्योंकि उनके जैसा भरी भरकम आवाज और खूंखार खलनायक का स्टाइल किसी के पास नहीं था। वो 80 से 90 के दर्शक के शुभप्रिय विलेन बनकर सामने आये। इनके दमदार आवाज के पीछे का राज ये हैं की अमरीश पूरी रोजाना 3 घंटे अपनी आवाज का रियाज किया करते थे। यानि डायलॉग डिलीवरी और एक्ट एंड स्पीच पर काम किया करते थे। इसी कारण इनकी आवाज से ही 50 परसेंट एक्टिंग हो जाया करती थी। बाकी काम इनका खूंखार चेहरा और बड़ी बड़ी आँखें कर दिया करती थी। 1982 वो साल था जब अमरीश पूरी ने हिंदी सिनेमा के साथ साथ इंटरनेशनल फिल्म कीतरफ भी रुख किया और वहां नहीं अपनी छाप छोड़ दी। 1982 में इनकी फिल्म आयी थी गांधी जिसमे इन्होने खान का किरदार निभाया था जोकि गांधी जी की साऊथ अफ्रीका की यात्रा वाले सीन्स में आता हैं। ये खान का किरदार भी इन्होने बखूबी निभाया।